सांभर का चौहान वंश Sambhar Ka Chauhan Vansh Rajasthan History Notes PDF for the various Competitive exams state level whenver the rajasthan GK is the part of Syllabus. The Chauhan Dynasty of Rajasthan is Very Popular. Sambhar ke Chauhan Shashak इस पोस्ट में हम बताएँगे सांभर के चौहान वंश का संस्थापक कौन था ? सांभर के चौहान शाशकों में सबसे प्रतापी शाशक कौन था ? Important Facts about Sambhar’s Chauhan Dynasty.
Origin of Sambhar’s Chauhan सांभर के चौहानों की उत्पत्ति
चौहानों की उत्पति के संबंध में विभिन्न मत हैं। पृथ्वीराज रासौ (चंद्रबरदाई) में इन्हें ‘अग्निकुण्ड’ से उत्पन्न बताया गया है, जो ऋषि वशिष्ठ द्वारा आबू पर्वत पर किये गये यज्ञ से उत्पन्न हुए चार राजपूत – प्रतिहार, परमार,चालुक्य एवं चौहानों(नों हार मार चाचो – क्रम) में से एक थे। मुहणोत नैणसी एवं सूर्यमल मिश्रण ने भी इस मत का समर्थन किया है। प. गौरीशंकर ओझा चौहानों को सूर्यवंशी मानते हैं। बिजोलिया शिलालेख के अनुसार चौहानों की उत्पत्ति ब्राह्मण वंश से हुई है।
चौहानों का मूल स्थान Chauhano ka Mool Sthan
राजस्थान में चौहानों के मूल स्थान सांभर (शाकम्भरी देवी – तीर्थों की नानी,देवयानी तीर्थ) के आसपास वाला क्षेत्र माना जाता था, इस क्षेत्र को सपादलक्ष(सपादलक्ष का अर्थ सवा लाख गांवों का समूह) के नाम से जानते थे, प्रारम्भिक चौहान राजाओं की राजधानी अहिच्छत्रपुर (हर्षनाथ की प्रशस्ति) थी जिसे वर्तमान में नागौर के नाम से जानते हैं। कुछ विद्वानों के अनुसार सांभर इनकी राजधानी थी।
संस्थापक :-यही पर वासुदेव चौहान ने चौहान वंश की नीव डाली।
इसने सांभर(सांभर झील के चारों ओर रहने के कारण चौहान कहलाये) को अपनी राजधानी बनाया। सांभर झील का निर्माण(बिजोलिया शिलालेख के अनुसार) भी इसी शासक ने करवाया। इसकी उपाधि महाराज की थी। अतः यह एक सामंत शासक था। वासुदेव के उत्तराधिकारी “गुवक प्रथम’ ने सीकर में हर्षनाथ मंदिर को निर्माण कराया इस मंदिर मे भगवान शंकर की प्रतिमा विराजमान है, जिन्हें श्रीहर्ष के रूप में पूजा जाता है।सांभर का चौहान वंश Sambhar Ka Chauhan Vansh Rajasthan GK
गूवक प्रथम के बाद गंगा के उपनाम से विग्रहराज द्वितीय को जाना जाता है सर्वप्रथम विग्रहराज द्वितीय ने भरूच (गुजरात) के चालुक्य शासक मूलराज प्रथम को पराजित किया तथा भरूच गुजरात में ही आशापुरा देवी के मंदिर का निर्माण कराया इस कारण विग्रहराज द्वितीय को मतंगा शासक कहा गया इस शासक की जानकारी का एकमात्र स्त्रोत सीकर से प्राप्त हर्षनाथ का शिलालेख है, जो संभवतयः 973ई. का है।
इस वंश का प्रथम स्वतंत्र शासक पृथ्वीराज प्रथम था जिसकी उपाधि महाराजाधिराज थी। पृथ्वीराज प्रथम के मंत्री हट्ड ने सीकर में जीण माता के मंदिर का निर्माण करवाया। सांभर का चौहान वंश Sambhar Ka Chauhan Vansh Rajasthan GK.
अजयराज चौहान (1113- 1133 ई.)- Sambhar Ka Chauhan Vansh
पृथ्वीराज प्रथम के पुत्र का नाम अजयराज था। अजयराज को चाँदी के सिक्कों पर ‘श्री अजयदेव’ के रूप में प्रदर्शित किया गया था, अजयराज की रानी सोमलेखा के भी हमें सिक्के प्राप्त हुए हैं, इससे ज्ञात होता है कि सोमलेखा ने भी अपने नाम के चाँदी के सिक्के चलवाए। अजयराज ने 1113ई. में अजयमेरू दुर्ग का निर्माण कराया, इस दुर्ग को पूर्व का जिब्राल्टर कहा जाता है। तथा अजमेर को अपनी राजधानी के रूप में स्वीकार किया मेवाड़ के शासक पृथ्वीराज ने अपनी रानी तारा के नाम पर अजयमेरू दुर्ग का नाम तारागढ़ दुर्ग रखा बाद में यही अजयमेरू तारागढ़/ गढ़बीठली के रूप में जाना जाने लगा अजयराज ने इस दुर्ग का निर्माण अजमेर कीबीठली पहाड़ी पर कराया था जिसे कारण इसे गढ़बीठली कहा गया।
अजयराज की उपलब्धि यह थी कि इसने चौहानों को एक संगठित भू-भाग प्रदान किया जिसे अजमेर के नाम से जाना गया है।
अर्णोराज चौहान/आनाजी (1133- 1150 ई. )
इस शासक ने सर्वप्रथम तुर्कों को पराजित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, तुर्कों पर विजय के उपलक्ष्य में अर्णोराज ने अजमेर शहर के बीचों -बीच अनासागर झील (Aanasagar Lake Ajmer) का निर्माण (1137 ई.) कराया था। जयानक ने अपने ग्रन्थ पृथ्वीराज विजय में लिखा है कि “अजमेर को तुर्कों के रक्त से शुद्ध करने के लिए आनासागर झील का निर्माण कराया था’ क्योंकि इस विजय में तुर्का का अपार खून बहा था। सांभर का चौहान वंश Sambhar Ka Chauhan Vansh Rajasthan GK.
जहांगीर ने यहां दौलत बाग का निर्माण करवाया। जिसे शाही बाग कहा जाता था। जिसे अब सुभाष उद्यान कहा जाता है। इस उद्यान में नूरजहां की मां अस्मत बेगम ने गुलाब के इत्र का आविष्कार किया। शाहजहां ने इसी उद्यान में पांच बारहदरी का निर्माण करवाया। अर्णांराज ने पुष्कर में वराह मंदिर का निर्माण करवाया था।
गुजरात के चालुक्य शासक कुमारपाल ने अर्णाराज पर आक्रमण किया लेकिन इस आक्रमण को अर्णोराज ने विफल कर दिया यह जानकारी हमें मेरूतुंग के प्रबंध चिन्तामणि नामक ग्रन्थ से मिलती है। अर्णोराज के पुत्र जगदेव ने इनकी हत्या कर दी इस कारण इसे चौहानों का पित्हंता भी कहा जाता है।
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विग्रहराज चतुर्थ (बीसलदेव) (1153-1164 ई.)- Sambhar Ka Chauhan Vansh
पृथ्वी राज तृतीय के अतिरिक्त चौहान वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली शासक विग्रहराज चतुर्थ हुआ। इनके काल को चौहानों का स्वर्ण काल भी कहा जाता है। सर्वप्रथम विग्रहराज ने तोमारों को परास्त कर दिल्ली के आसपास वाले भू-भाग पर अधिकार किया इस प्रकार चौहानों के हाथ में पहली बार दिल्ली का राज्य आया, इस कारण विग्रहराज चतुर्थ को ‘कटिबंधु’ के नाम से भी जाना जाता था। इसने पंजाब की भाण्डान को पराजित कर दूर भगा दिया। यह एक कवि हृदय शासक था। इसे कवि बांधव भी कहा जाता है।
इसने स्वयं ने हरकेलि (नाटक) की रचना की। जिसमें शिव-पार्वती व कुमार कार्तिकेय का वर्णन है। इसके दरबारी कवि नरपति नाल्ह ने बीसलदेव रासो ग्रन्थ की रचना की। अन्य कवि सोमदेव ने ललित विग्रहराज की रचना की। 1153 से 1156 ई. के मध्य विग्रहराज ने अजमेर में एक संस्कृत विद्यालय का निर्माण करवाया जिसे 1200 ई में कुतुबुद्दीन ऐबक ने तुडवाकर उसके स्थान पर ढाई दिन का झोपडा बनवाया।
यहां पर पंजाब शाह नामक सुफीसंत का ढाई दिन का उर्स भरता था इसी कारण इसे ढाई दिन का झोपडा कहते है।
टोंक के बीसलपुर कस्बे में बीसलपुर बांध का निर्माण करवाया। विग्रहराज चतुर्थ बीसलदेव प्रथम शासक था जिसने पशु हत्या पर प्रतिबंध लगाया था।
पृथ्वीराज तृतीय (1177-1192 ई. )- Prithviraj Third
- जन्म 1166 ई.(वि.स.1223) अहिलपाटन (गुजरात)
- उपनाम- रायपिथौरा, दलपुगल की उपाधि धारण की
- माता – कर्पूरी देवी
- प्रधानमंत्री- कदम्बास (केमास)
- पिता – सोमेश्वर
- खाण्डेराव पृथ्वीराज का सेनापत
चौहान वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली व प्रसिद्ध शासक पृथ्वीराज तृतीय था। 1178 ई. में पिता सोमेश्वर की मृत्यु के पश्चात् पृथ्वीराज अजमेर का शासक बना। वह छोटी आयु(11 वर्ष ) का था। अतः उसकी माता कर्पूरी देवी व प्रधानमंत्री केमास ने प्रशासन का कार्यभार सम्भाला।
1182 ई. में पृथ्वीराज ने भरतपुर-मथुरा क्षेत्र में भण्डानकों के विद्रोह का अंत किया। 1182 ई. में युवा हाने के पश्चात् पृथ्वीराज ने महोबा के चंदेल वंश के शासक परमाल(परमार्दी) देव पर आक्रमण किया। इस युद्ध (तुमुल का युद्ध) में परमार्दिदेव के दो सेनानायक आल्हा व उदल वीरगति को प्राप्त हुए।
नागौर युद्ध (1184 ई. )
(गुजरात के चालुक्य शासक भीमदेव द्वितीय व पृथ्वीराज चौहान के बीच) गुजरात के शासक, भीमदेव व पृथ्वीराज तृतीय के मध्य आबू की राजकुमारी इच्छनी को प्राप्त करने के लिए युद्ध हुआ और दोनो के मध्य संधि हो गई। दोनो ने इच्छीनी से विवाह नहीं किया। अतः इच्छनी के पिता ने उसे जहर दे दिया। पृथ्वीराज के नाना अनंगपाल तोमर ने दिल्ली की स्थापना की । अनंगपाल निसंतान था। अतः उसने अपना राज्य पृथ्वीराज को दे दिया।
अब पृथ्वीराज ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया। पृथ्वीराज व तूर्की शासक मोहम्मद गौरी की राज्य सीमाएं स्पर्श करने लगी। दोनों के मध्य तराइन के दो युद्ध हुए। सांभर का चौहान वंश Sambhar Ka Chauhan Vansh Rajasthan GK तराइन के दोनों युद्धों का विस्तृत विवरण कवि चन्द्र बरदाई के ‘पृथ्वीराज रासो’ हसन निजामी के ‘ताजुल मासिर’ एवं सिराज के तबकात ए नासिरी में मिलता है।
तराईन का प्रथम युद्ध (1191 ई. ) The First Battle Of Tarain
इस युद्ध में पुथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को पराजित कर दिया।
तराईन का द्वितीय युद्ध (1192 ई. ) The Second Battle of Tarain
तराइन का द्वितीय युद्ध भारतीय इतिहास की एक निर्णायक एवं युग परिवर्तनकारी घटना साबित हुआ। तराइन के इस युद्ध में गौरी ने पृथ्वीराज को पराजित कर उसकी हत्या कर दी और उसके पुत्र गोविन्द को राणथम्भौर का राज्य दे दिया।
उसके पश्चात मुहम्मद गौरी ने कन्नौज नरेश जयचंद्र को भी हराया और मार डाला। आपसी द्वेष के कारण उन दोनों की हार और मृत्यु हुई।
पृथ्वीराज के दरबार में पृथ्वीराज विजय का लेखक ‘जयानक’ और पृथ्वीराज रासो के लेखक एवं मित्र चंद्र बरदाई, विद्यापति गौड़, वागीश्वर जनार्दन तथा विश्वरूप आदि विद्वान थे सांभर का चौहान वंश Sambhar Ka Chauhan Vansh Rajasthan GK PDF.
चन्द्रबरदाई ने पृथ्वीराज रासो की रचना की, रासो का पिछला भाग चन्द्रबरदाई के पुत्र जल्हण ने पूर्ण किया। पृथ्वीराज रासो की भाषा पिंगल है। साथ ही इसे हिन्दी की पहली रचना, महाकाव्य होने का सम्मान प्राप्त है। पृथ्वीराज रासों के अनुसार नेत्रहीन पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण चलाकर मोहम्मद गौरी की हत्या की।
चन्द्रबरदाई ने इस संबंध में पृथ्वीराज को दोहा सुनाया –
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
तां ऊपर सुल्तान है, मत चूकै चौहान।।
पृथ्वीराज तृतीय और कन्नौज के शासक जयचन्द गहडवाल की पुत्री संयोगिता के मध्य प्रेम इतिहास में प्रसिद्ध है। प्रसिद्ध सूफी संत और चिश्ती सम्प्रदाय से संबंधित ख्वाजा मुइनूद्दीन चिश्ती पृथ्वीराज तृतीय के समय अजमेर आये। अजमेर में इनकी दरगाह का निर्माण रजिया के पिता इल्तुतमिश ने करवाया। सांभर का चौहान वंश Sambhar Ka Chauhan Vansh Rajasthan GK PDF.
देहलीवाल के सिक्के – वे सिक्के जो पृथ्वीराज चौहान के मध्य के थे और मोहम्मद गौरी ने उसके एकतरफ अपना निशान लगवाया और दूसरी तरफ लक्ष्मी आदि देवियों के चित्र बनवाये।
रणथम्भौर के चौहान- Chauhan’s of Ranthambhor Rajasthan GK PDF Notes
- संस्थापक गोविन्दराज (1194 ई. में)
- हम्मीर देव चौहान (1282-1301)
- शासन – 19 वर्श
- युद्ध लडे़ -18
- विजय Victory -17
- कोटियजन यज्ञ (विश्वरूप) करवाया ।
चौहान वंश का अंतिम शासक हम्मीर देव चौहान ने अपने जीवनकाल में 18 युद्ध लडे व 17 में विजयी हुऐ। 1301 ई. में तुर्की शासक अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया इसका मुख्य कारण तूर्की के विद्रोही सैनिक मोहम्मदशाह व केहब्रु हम्मीर मास शरण में थे। तूर्की शासक ने जब उन्हे वापस मांगा तब हडी हम्मीर देव ने इनकार कर दिया। परिणाम स्वरूप (1301 ई.) में दोनों के मध्य युद्ध हुआ। रणथम्भौर का चौहान वंश Ranthambhor Ka Chauhan Vansh Rajasthan GK PDF Notes.
युद्ध के समय हम्मीर के दो सेनापति रणमल व रतिपाल ने विश्वासघात किया। हम्मीर देव chauhan युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ और उसकी पत्नि रंगदेवी ने जल जोहर किया। रणथम्भौर युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी के साथ अमीर खुसरौ व अलाउद्दीन का छोटा भाई उलुग खां था।
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