राजपूत युग राजस्थान Rajput Yug Rajasthan Rajput Dynasty Rajasthan History PDF राजपूतों की उत्त्पत्ति कैसे हुई ? Rajputo ki uttpatti ka siddhant kisne diya? rajput kaal ka samay kab se kab tak hai ? राजपूतों का मूल स्थान कोनसा है ? ये मूल निवासी कहाँ के थे ? राजपूतों की कितनी शाखाएँ राजस्थान में संचालित थी ? सबसे शक्तिशाली राजस्थान का राजवंश कोनसा है ? इन सभी प्रश्नों के जवाब मिलेंगे इस पोस्ट में.
470 ई. में हर्षवर्धन की मृत्यु के उपरान्त उसका सम्पूर्ण साम्राज्य छोटे-छोटे अनेक राज्यों में बट गया। जिसमें अधिकांश राज्य राजपूत जाति के थे। अतः 7 वी से 12 वीं सदी भारतीय इतिहास में राजपूत युग के नाम से जानी जाती है।
राजपूतो की उत्पत्ति के बारे में तथ्य Rajputo ki Uttpatti ke bare me tathy
- भारतियों से उत्पत्ति
- प्राचीन क्षेत्रियों से
- . जी.एच. ओझा
- सी.वी.वैध
- दशरथ शर्मा
- अग्निकुण्ड का सिद्वान
- सूर्यमल मिश्रण
- चन्द्रबर दाई- इनके अनुसार आबू पर्वत पर यज्ञ किया और निम्न 4 राजपूतों की उत्पत्ति हुई –
- चौहान
- चालुक्य (सौलंकी)
- प्रतिहार
- परमार
- प्राचीन क्षेत्रियों से
- विदेशियों से उत्पत्ति का सिद्धांत
- कर्नल जेम्स टाड – शक (सीथियन) से हुआ
- वी.ए. स्मीथ – शक कुषाण हूण पहलव से हुआ
1. मेवाड़ का गुहिल/सिसोदिया वंश- Mewar Dynasty
दक्षिणी राजस्थान में उदयपुर के आस-पास के क्षेत्र को मेवाड़/मेवपाट/प्रागवाट/ शिवी भी कहा जाता था। यहीं पर गुहिल वंश की स्थापना हुई है। इस बारे में दो मत प्रचलित है-
प्रथम मत के अनुसार राजस्थान के इतिहास के जनक कर्नल टाॅड ने अपनी पुस्तक ” एनाल्स एण्ड एंटीक्विटीज ऑफ़ राजस्थान ” में लिखा है। कि गुजरात में वल्लभी का राजा शिलादित्य अरब आक्रमण में मारा गया। उसकी एक पत्नी पुष्पावती जो गर्भवती थी और चन्द्रावती (सिरोही) में तीर्थ यात्रा पर गई हुई थी। वापसी में उसने एक गुफा में गुह (गुहादित्य) नामक पुत्र को जन्म दिया। इसी कुह ने मेवाड़ में गुहिल वंश की नीव रखी। किन्तु सर्वाधिक मान्यता इस बात की है कि मेवाड़ में हारित कृषि के शिल्प और ग्वाले काला भोज (बप्पा रावल) ने हारित ऋर्षि के आशीर्वाद से इस वंश की नीव रखी थी।
- मेवाड़ में गुहिल वंश का संस्थापक -गुह
- मेवाड़ के गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक – बप्पा रावल 728-753 ई.
1. बप्पारावल (728-753 ई.)- Bappa Rawal
राजधानी -नागदा
नागदा में सहस्रबाहु (सास बहु का मंदिर) बनवाया शिव का उपासक, बप्पा ने सोने के सिक्के चलाएं नागदा में दो मंदिर बने हुए है। बड़ा मंदिर सास व छोटा मंन्दिर बहू का मंदिर कहलाता है। Rajput kaal/yugउनके एक स्वर्ण सिक्के पर त्रिशूल का चिन्ह है तथा दूसरी तरफ सूर्य का अंकन है। इस प्रकार स्पष्ट है कि बप्पा रावल भगवान शिव के उपासक थे और स्वयं को सूर्यवंशी मानते थे।
बप्पा रावल ने उदयपुर के एकलिंग जी नामक स्थान पर शिव के 18 अवतारों में से एक लकुलिश का मंदिर बनवाया जो कि एक मात्र लकुलिश का मंदिर बनवाया जो कि एक मात्र लुकलिश मंदिर है। 753 ई. में बप्पा रावल का देहान्त हो गया।
2. जैत्र सिंह
बप्पा रावल के पश्चात् इस वंश का इतिहास अंधकार मय है। 13 वीं सदी में जब रजिया के पिता इल्तुतमिश (अल्तमश) ने मेवाड़ की राजधानी नागदा पर आक्रमण कर उसे तहस नहस कर दिया तब मेवाड़ का शासक जेत्रसिंह था। ने चित्तौड़ को अपनी नयी राजधानी बनाया। इल्तुतमिश ने जब चित्तौड़ पर आक्रमण किया तब जेत्रसिंह ने उसे पराजित कर दिया। 1260 में महारावल तेजसिंह के समय “श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी” नामक मेवाड़ के प्रथम चित्रित ग्रन्थ की रचना हुई 1302 मे मेवाड़ का शासक रतन सिंह बना।
रतन सिंह (1302 -1303)
1302 ई. में जब रतनसिंह का राज्यभिषेक हुआ और 1303 में दिल्ली के तुर्की शासक आलाउद्दीन खिलजी ने आक्रमण किया जिसका प्रमुख कारण तूर्की शासक की साम्राज्य विस्तार नीति था। किन्तु 1540 में मलिक मोहम्म ज्ञायसी ने पद्मावत की रचना की जिसके अनुसार रतन सिंह की पत्नि रानी पद्मिनी सिहलद्वीप के राजा गधवी सेन की पुत्री थी और अत्यधिक सुन्दर थी। अलाउद्दीन खिलजी ने उसे प्राप्त करने के लिए चित्तौड पर आक्रमण किया इस युद्ध में रतनसिंह व गोरा-बादल वीरगति को प्राप्त हुए। रानी पद्मिनी ने 1600 दासियों के साथ जौहर किया यह मेवाड का प्रथम शाका कहलाया है।
अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर अधिकार कर उसका नाम खिज्राबाद कर दिया। अमीर खुसरो इस युद्ध मे अलाउद्दीन के साथ था।
सिसोदिया वंश
1316 ई. में अलाउद्दीन खिलजी की मृत्यु हो गई तब सिसोदा गांव के सामान्त हम्मीर ने अगले दस वर्षो में पूरे मेवाड़ पर अधिकार कर लिया और सिसोदा गांव का सामन्त होने के कारण उसने एक नयये वंश सिसोदिया वंश की स्थापना की। उसे ” विषमघाटी पंचानन” मेवाड़ का उद्धारक” और रसिक प्रिया ग्रन्थ में “वीरराजा” की संज्ञा दी गयी है। उसके समय ही ” नटणी का चबुतरा बनवाया जो पिछाला झील के तट पर उदयपुर में है।
राणा लाखा Rana Lakha Sisodiya Vansh
हम्मीर के पश्चात् खेता और राणा लाखा शासक हुआ राणा लाखा के समय उदयपुर में जावर की खानों की खोज हुई जो चांदी की खाने थी। इसी के समय 14 वीं सदी पिच्छू नाम बनजारे (चिडिमार) ने अपने बैल की स्मृति में उदयपुर में पिछौला झील का निर्माण करवाया। राणा लाखा के पुत्र कुवंर चूडा का विवाह रणमल राठौड़ की बहन हंसा बाई से तय हुआ किन्तु स्वयं लाखा ने हंसा बाई से विवाह कर लिया। हंसा बाई ने अपने
पुत्र को मेवाड का शासक, बनाने की शर्त रखी उसे कुवंर चूडा ने मान लिया। कुवंर ने आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा की इसी चूडा को राजस्थान का भीेष्मभीे पितामाह कहा जाता है। Rajput yug Rajasthan राणा लाखा के पश्चात् हंसाबाई से उत्पन्न उसका पुत्र मोकल मेवाड़ का शासक बना। मोकल की हत्या 1433 ई. में उसके चाचा व मेरा नामक व्यक्ति ने की वे मोकल के पुत्र कुम्भा को भी मारना चाहते थें किन्तु मारवाड़ के रणमल राठौड व मेवाड़ के राधव देव सिसोदिया ने कुम्भा को सुरक्षित मेवाड़ का शासक बनाया।
राणा कुम्भा (1433-1467 AD)
1433-1468 ई. राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक मेवाड़ के 84 दुर्गो में से 32 दुर्ग बनवाएं राजनीतिक व सांस्कृतिक दृष्टि कुम्भा का स्थान महत्वपूर्ण है। उन्होंने 1433 में सारंगपुर के युद्ध में मालवा के शासक महमुद खिलजी प्रथम को पराजित किया। इसी विजय के उपलक्ष में 1444 में चित्तौड़ के विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया वर्तमान में विजय स्तम्भ राजस्थान पुलिस का प्रतिक चिन्ह है। इसके वास्तुकार राव जैता थे।
राणा कुंभा संगीत के विद्वान थे। उन्हे ” अभिन्व भत्र्ताचार्य” भी कहा जाता हैं कुंभा ने “संगीतराज ” “रसिकप्रिय” “नृत्य” “रतन कोष” व “सूढ प्रबंध” ग्रन्थों की रचना की थी। रसिका प्रिया गीत गोविन्द पर टीका है। राणा कुंभा के दरबार में प्रसिद्ध शिल्पकार मण्डन था। जिसने “रूप मण्डन” “प्रसाद मण्डन” “वास्तुमण्डन” “रूपावतार मण्डन” ग्रन्थों की रचना की। रूपावतार मण्डन (मूर्ति निर्माण प्रकरण) इसमें मूर्ति निर्माण की जानकारी मिलती है।
मण्डन के भाई नाथा ने “वस्तुमंजरी” पुस्तक की रचना की मण्डन के पुत्र गोविन्द ने “उद्धार घौरिणी” “द्वार दीपिक” व कुंभा के दरबारी कवि कान्ह जी व्यास ने “एकलिंग में ग्रंथ लिखा। 1468 ई. कुंभलगढ़ दुर्ग में राणा कुंभा के पुत्र ऊदा (उदयकरण) ने अपने पिता की हत्या कर दी। उदयकरण को पितृहंता कहा जाता है। राणा कुम्भा के द्वारा किए गए प्रमुख निर्माण कार्य निम्न है-
- विजय स्तम्भ
- कीर्ति स्तम्भ
- कुम्भ श्याम मंदिर (मीरा मंदिर)
- कुंभलगढ दुर्ग (राजसंमद)
- मचाना दुर्ग (सिरोही)
- बसंती दुर्ग (सिरोही)
- अचलगढ़ दुर्ग (माऊट आबू)
ऊदा (उदयकरण) → रायमल (1509 में देहांत) – Udai karan Sisodiya vansh Mewar
कुंभा के पुत्र रायमल ने ऊदा को मेवाड़ से भगा दिया एवं स्वयं शासक बना। रायमल का बडा पुत्र पृथ्वीराज सिसोदिया तेज धावक था। अतः उसे उडना राजकुमार कहा जाता था। 1509 ई में रायमल का पुत्र संग्राम सिंह मेवाड का शासक बना।
राणा सांगा (संग्राम सिंह -1509-1528)
1509 ई. में जब राणा सांगा का राज्यभिषेक हुआ। तब दिल्ली का शासक सिकन्दर लोदी था। 1505 में उसने आगरा की स्थापना करवाई। 1517 में उसकी मृत्यु के उपरान्त इसका पुत्र इब्राहिम लोदी शासक बना। उसने मेवाड़ पर दो बार आक्रमण किया।
1. खातोली का युद्ध (बूंदी) 1518
2.बारी (धौलपुर) का युद्ध
दोनो युद्धो में इब्राहिम लोदी की पराजय हुई। 1518 से 1526 ई. तक के मध्य राणा सांगाा अपने चरमोत्कर्ष पर था। 1519 में राणा सांगा ने गागरोन के युद्ध में मालवा के शासक महमूद खिल्ली द्वितीय को पराजित किया।
पानीपत का प्रथम युद्ध (21 अप्रेल 1526)
मूगल शासक बाबर पठान शासक इब्राहिम लोदी इस युद्ध में बाबर की विजय हुई और उसने भारत में मुगल वंश की नीव डाली।
1527 में बाबर व रााणा सांगा के मध्य दो बार युद्ध हुआ – फरवरी 1527 में बयाना का युद्ध (भरतपुर) सांगा विजयी, 17 मार्च 1527 खानवा युद्ध (भरतपुर)
खानवा युद्ध (17 March 1527)
बाबर संयुक्त सेना -विजयी
खानवा के युद्ध में निम्न शाशकों ने राणा सांगा का साथ दिया –
- मारवाड शासक राव गंगा -इसने अपने पुत्र मालदेव के नेतृत्व मे 4000 सैनिक भेजे
- बीकानेर – कल्याण मल
- आमेर- पृथ्वीराज कछवाह
- हसन खां मेवाती -खानवा युद्ध में सेनापति
- -देरी का मेदिनी राय
- बागड़ (डूंगरपुर)का रावल उदयपुर सिंह व खेतसी
- देवलिया का राव बाघ सिंह
- ईडर का भारमल
- झाला अज्जा
बाबर ने इस युद्ध को जेहाद (धर्मयुद्ध) का नाम दिया। इस युद्ध में बाबर की विजय हुई। बाबर ने गाजी (विश्वविजेता) की उपाधी धारण की। 1528 ई. में राणा सांगा को किसी सामन्त ने जहर दे दिया परिणामस्वरूप सांगा की मृत्यु हो गई। सांगा का अन्तिम संस्कार भीलवाडा के माडलगढ़ नामक स्थाप पर किया गया जहां सांगा की समाधी /छतरी है। राणा सांगा के शरीर पर 80 से अधिक धाव थे कर्नल जेम्स टाॅड ने राणा सांगा को मानव शरीर का खण्डहर (सैनिक भग्नावेश) कहा है।
राणा उदयसिंह
- उदयपुर की स्थापना -1559 ई.
- उदयपुर सागर झील का निर्माण करवाया
- अकबर ने उदयपुर पर आक्रमण किया -1567-68
इस युद्ध में उदयसिंह के सेना नायक जयमल व फत्ता ने उदयसिंह को गोगुदा की पहाडियों में भेज दिया। मुगल व मेवाड़ सेना में घमासान युद्ध हुआ। जयमल के घायल होने पर वे अपने भतीजे के कन्धों पर बैठकर दोनों हाथों से वीरतापूर्वक लडे़ और अन्त में वीरगति को प्राप्त हुए।
कल्ला जी राठौड़ का चतुर्भुज देवता कहा जाता है। अकबर ने 30 हजार युद्ध बन्दियों को मरवा दिया अकबर के जीवन में यह एक धब्बा माना जाता है। अकबर कलंक को धोने के लिए जयमल व पन्ना की पाषाण मूर्ति आगरा के दुर्ग के बाहर स्थापित करवाई। 1572 में गोगुदा की पहाडियों में उदयसिंह का निधन हो गया।
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राणा प्रताप – (1572-1597 ई.)
- जन्म – 9 मई 1540 कुम्भलगढ़ दुर्ग
- माता – जयबन्ता बाई
- उपनाम – कीका
- राज्यभिषेक – गोगुन्दा की पहाडियों में
राणा प्रताप को उत्तराधिकार में अकबर जैसा शत्रु व मेवाड़ का पूरी तरह से उजडा राज्य प्राप्त हुआ। आरम्भ में अकबर ने राणा प्रताप के पास चार दूत मण्डल भेजे।
- जलाल खां – नवम्बर 1572
- मान सिंह – जून 1573
- भगवान दास – सितम्बर 1573
- टोडरमल – दिसम्बर 1573
किन्तु राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की। अतः 18 जून 1576 को प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। हल्दी घाटी युद्ध 21 जून 1576 मेवाड़ सेना मुगल सेना राणा प्रताप हाकिम खांसूर मानसिंह आसफ खां आरम्भ में युद्ध का पलड़ा मेवाड़ के पक्ष में रहा। अकबर के आने की अफवाह ने मुगल सेना को जोश दिया और युद्ध मूगलों के पक्ष में चला गया। युद्ध बीदा झाला ने राणा प्रताप की जान बचाई। इस युद्ध के प्रत्यक्ष दर्शी लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी ने अपनी पुस्तक ‘मुन्तखब अल तवारिख’ में इस युद्ध को “गोगुन्दा का यद्ध” कहा है। अकबर के नवरतन अबुल फजल ने अपनी पुस्तक आइने अकबरी में इसे “खमनौर का युद्ध” की संज्ञा दी है।
युद्ध के दौरान राणा प्रताप के प्रिय घोडे़ चेतक के पांव में चोट लग गई। हल्दी घाटी के समीप बलिचा गांव में चेतक की समाधाी बनी हुई है।
पाली के भामाशाह ने 20 लाख स्वर्ण मुद्राऐं राणा प्रताप को भेट की जिससे मेवाड़ की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ राणा प्रताप ने मुगलों से युद्ध जारी रखा।
दिवेर का युद्ध (1582ई.)
- इस युद्ध में राणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। मेवाड़ का मेराथन – कर्नल जेम्स टोड
- चावंड को राजधानी बनाया 1585 ई. में
1597 ई. में राणा प्रताप का देहान्त अन्तिम संस्कार -बाडोली (उदयपुर) में बाडोली में राणा प्रताप की समाधि स्थित है। यहां पर महाराणा प्रताप की आठ खम्भों पर बनी भव्य छतरी है।
राणा अमर सिंह (1597-1620)
15 फरवरी 1615 मुगल-मेवाड़ संधि अमरसिंह व जहांगीर के मध्य जहांगीर ने इस संधि पर मैगजीन दुर्ग (अजमेर) में हस्ताक्षर किए 1615 ई. में सर टाॅमस से मैगजीन दुर्ग में जहांगीर से प्रथम बार मिला था। Rajput Yug Rajasthan इस संधि से मेवाड़ मूगलों के अधीन हो गया। 1620 में अमर सिंह का देहान्त हो गया।
राणा राजसिंह (1652-1680)
औरंगजेब को तीन बार पराजित किया । मेवाड के शासको में राणा राजसिंह ने मुगलों से प्रतिरोध की नीति अपनाई। उसने औरंगजेब को तीन युद्धों में पराजित किया। उसने राजसंमद झील का निर्माण करवाया जिसका उत्तरी भाग नौ चैकीके नाम से विख्याता है यहीं पर राजप्रशस्ति के नाम से विख्याता लेख अंकित है जो कि संसार की सबसे बड़ी प्रशस्ति लेख है। राजसिंह के समय चित्रकला की नाथद्वारा शैली का विकास हुआ पिछवाई चित्रकला इस शैली की प्रमुख विशेषता है जिसमें श्री कृष्ण की बाललिलाओं का चित्रण है।
राणा राजसिंह का एक सेनापति चुडावत सरदार रतन सिंह था। उसका विवाह हाडा रानी सहल कवंर से हुआ। विवाह के कुछ समय बाद ही रतनसिंह को युद्ध के लिए जाना पड़ा चूडावत सरदार ने अपने पत्नि से निशानी की मांग की। हाडा रानी ने अपना सिर काट कर दे दिया। 1680 में राजसिंह का देहान्त हो गया। राणा राजसिंह ने नाथद्वारा के सिवाड़ (सिहाड) नामक स्थान पर श्री कृष्ण का मंदिर बनवाया।
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