राजस्थान की जलवायु Climate of Rajasthan- Rajasthan geography Notes pdf download. rajasthan geography complete notes pdf download for the competitive exams REET, Teacher 1st Grade, Teacher 2nd Grade, RAS, RSMSSB, clerk, rajasthan police sub inspector, rajasthan police constable and all other exam जहाँ पर राजस्थान का भूगोल राजस्थान की जलवायु सिलेबस होता है. यह टॉपिक प्रतियोगी परीक्षाओं की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है.
राजस्थान की जलवायु कैसी है ? प्रभावित करने वाले करक
राज्य राजस्थान की जलवायु शुष्क से उपआर्द्र मानसूनी जलवायु है अरावली के पश्चिम में न्यून वर्षा, उच्च दैनिक एवं वार्षिक तापान्तर निम्न आर्द्रता तथा तीव्रहवाओं युक्त जलवायु है। दुसरी और अरावली के पुर्व में अर्द्रशुष्क एवं उपआर्द्र जलवायु है। जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक – अक्षांशीय स्थिती, समुद्रतल से दुरी, समुद्र तल से ऊंचाई, अरावली पर्वत श्रेणियों कि स्थिति एवं दिशा आदि।
राजस्थान की जलवायु कि प्रमुख विशेषताएं –
- शुष्क एवं आर्द्र जलवायु कि प्रधानता
- अपर्याप्त एंव अनिश्चित वर्षा
- वर्षा का अनायस वितरण
- अधिकांश वर्षा जुन से सितम्बर तक
- वर्षा की परिर्वतनशीलता एवं न्यूनता के कारण सुखा एवं अकाल कि स्थिती अधिक होना।
राज्य की स्थति – जलवायु
राजस्थान कर्क रेखा के उत्तर दिशा में स्थित है। अतः राज्य उपोष्ण कटिबंध में स्थित है। केवल डुंगरपुर और बांसवाड़ा जिले का कुछ हिस्सा उष्ण कटिबंध में स्थित है। अरावली पर्वत श्रेणीयों ने जलवायु कि दृष्टि से राजस्थान को दो भागों में विभक्त कर दिया है। अरावली पर्वत श्रेणीयां मानसुनी हवाओं के चलने कि दिशाओं के अनुरूप होने के कारण मार्ग में बाधक नहीं बन पाती अतः मानसुनी पवनें सीधी निकल जाति है और वर्षा नहीं करा पाती। इस प्रकार पश्चिमी क्षेत्र अरावली का दृष्टि छाया प्रदेश होने के कारण अल्प वर्षा प्राप्त करताह है।
जब कर्क रेखा पर सुर्य सीधा चमकता है तो इसकी किरणें बांसवाड़ा पर सीधी व गंगानगर जिले पर तिरछी पड़ती है। राजस्थान का औसतन वार्षिक तापमान 37 डिग्री से 38 डिग्री सेंटीग्रेड है।
राजस्थान को जलवायु के भाग
- शुष्क जलवायु प्रदेश(0-20 सेमी.)
- अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश(20-40 सेमी.)
- उपआर्द्र जलवायु प्रदेश(40-60 सेमी.)
- आर्द्र जलवायु प्रदेश(60-80 सेमी.)
- अति आर्द्र जलवायु प्रदेश(80-100 सेमी.)
1. शुष्क प्रदेश
- क्षेत्र – जैसलमेर, उत्तरी बाड़मेर, दक्षिणी गंगानगर तथा बीकानेर व जोधपुर का पश्चिमी भाग।
- औसत वर्षा – 0-20 सेमी.।
2. अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश
- क्षेत्र – चुरू, गंगानगर, हनुमानगढ़, द. बाड़मेर, जोधपुर व बीकानेर का पूर्वी भाग तथा पाली, जालौर, सीकर,नागौर व झुझुनू का पश्चिमी भाग।
- औसत वर्षा – 20-40 सेमी.
3. उपआर्द्ध जलवायु प्रदेश
- क्षेत्र – अलवर, जयपुर, अजमेर, पाली, जालौर, नागौर व झुझुनू का पूर्वी भाग तथा टोंक , भीलवाड़ा व सिरोही का उत्तरी-पश्चिमी भाग।
- औसत वर्षा – 40-60 सेमी.
4. आर्द्र जलवायु प्रदेश
- क्षेत्र – भरतपुर, धौलपुर, कोटा, बुंदी, सवाईमाधोपुर, उ.पू. उदयपुर, द.पू. टोंक तथा चित्तौड़गढ़।
- औसत वर्षा – 60-80 सेमी.
5. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
- क्षेत्र – द.पू. कोटा, बारां, झालावाड़, बांसवाडा, प्रतापगढ़, डूंगरपुर, द.पू. उदयपुर तथा माउण्ट आबू क्षेत्र।
- औसत वर्षा – 60-80 सेमी.
आर्द्रता – Humadity
वायु में उपस्थित जलवाष्प की मात्रा को आर्द्रता कहते है। आपेक्षिक आर्द्रता मार्च-अप्रैल में सबसे कम व जुलाई-अगस्त में सर्वाधिक होती है।
‘लू’ क्या होती है ?
- मरूस्थलीय भाग में चलने वाली शुष्क व अति गर्म हवाएं लू कहलाती है।
- समुद्र तल से ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान घटता है। इसके घटने की यह सामान्य दर 165 मी. की ऊंचाई पर 1 डिग्री से.ग्रे. है।
ब्लादीमीर कोपेन का जलवायु सिद्धांत
ब्लामिदिर कोपेन राजथान को जलवायु की दृष्टि से 4 भागों में बांटा है जो निम्न प्रकार है –
- Aw उष्ण कटिबंधीय आर्द्र जलवायु प्रदेश
- BShw अर्द्ध शुष्क कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
- BWhw उष्ण कटिबंधीय शुष्क जलवायु प्रदेश
- Cwg उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
राजस्थान में कृषि जलवायु प्रदेश – Climate of Rajasthan
राज्य राजस्थान को कृषि की दृष्टि से निम्न लिखित 10 जलवायु प्रदेशों में बांटा गया है, जो निम्न प्रकार है –
- शुष्क पश्चिमी मैदानी
- सिंचित उत्तरी पश्चिमी मैदानी
- शुष्क आंशिक सिंचित पश्चिमी मैदानी
- अंन्त प्रवाही
- लुनी बेसिन
- पूर्वी मैदानी(भरतपुर, धौलपुर, करौली जिले)
- अर्द्र शुष्क जलवायु प्रदेश
- उप आर्द्र जलवायु प्रदेश
- आर्द्र जलवायु प्रदेश
- अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
राजस्थान की ऋतुएँ Seasons of Rajasthan
जलवायु का अध्ययन करने पर राजस्थान में तीन प्रकार की ऋतुएं पाई जाती हैः –
- ग्रीष्म ऋतु: (मार्च से मध्य जून तक)
- वर्षा ऋतु : (मध्य जून से सितम्बर तक)
- शीत ऋतु : (नवम्बर से फरवरी तक)
1. ग्रीष्म ऋतु: (मार्च से मध्य जून तक)
राजस्थान में मार्च से मध्य जून तक ग्रीष्म ऋतु होती है Climate of Rajasthan इसमें मई व जून के महीने में सर्वाधिक गर्मी पड़ती है। अधिक गर्मी के वायु मे नमी समाप्त हो जाती है। परिणाम स्वरूप वायु हल्की होकर उपर चली जाती है। अतः राजस्थान में निम्न वायुदाब का क्षेत्र बनता है परिणामस्वरूप उच्च वायुदाब से वायु निम्न वायुदाब की और तेजगति से आती है इससे गर्मियों में आंधियों का प्रवाह बना रहता है।
2. वर्षा ऋतु : (मध्य जून से सितम्बर तक) Climate of Rajasthan
राजस्थान में मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा ऋतु होती है। राजस्थान में 3 प्रकार के मानसूनों से वर्षा होती है-
- बंगाल की खाड़ी का मानसून-
यह मानसून राजस्थान में पूर्वी दिशा से प्रवेश करता है। पूर्वी दिशा से प्रवेश करने के कारण मानसूनी हवाओं को पूरवइयां के नाम से जाना जाता है यह मानसून राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा करवाता है इस मानसून से राजस्थान के उत्तरी, उत्तरी-पूर्वी, दक्षिणी-पूर्वी क्षेत्रों में वर्षा होती है। - अरब सागर का मानसून
यह मानसून राजस्थान के दक्षिणी-पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है यहमानसून राजस्थान में अधिक वर्षा नहीं कर पाता क्योंकि अरावली पर्वतमाला के समान्तर निकल जाता है। राजस्थान में अरावली पर्वतमाला का विस्तार दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व कि ओर है यदि राज्य में अरावली का विस्तार उत्तरी-पश्चिमी से दक्षिणी-पूर्व कि ओर होता तो राजस्थान में सर्वाधिक क्षेत्र में वर्षा होती। राजस्थान में सर्वप्रथम अरबसागर का मानसून प्रवेश करता है - भूमध्यसागरीय मानसून
यह मानसून राजस्थान में पश्चिमी दिशा से प्रवेश करता है। पश्चिमी दिशा से प्रवेश करने के कारण इस मानसून को पश्चिमी विक्षोभों का मानसून के उपनाम से जाना जाता है। इस मानसून से राजस्थान में उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में वर्षा होती है। यह मानसून मुख्यतः सर्दीयों में वर्षा
करता है सर्दियों में होने वाली वर्षा को स्थानीय भाषा में मावठ कहते हैं यह वर्षा गेहुं की फसल के लिए सर्वाधिक लाभदायक होती है। इन
वर्षा कि बूदों को गोल्डन ड्रो प्स या सोने कि बुंद के उप नाम से जाना जाता है।
वर्षा- Rain In Rajasthan
राजस्थान में सर्वाधिक वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून हवाओं से होती है तथा दुसरा स्थान बंगाल की खाड़ी का मानसून, तीसरा स्थान अरबसागर के मानसून, Climate of Rajasthan अन्तिम स्थान भूमध्यसागर के मानसून का है।
मावठ
- सर्दीयों में पश्चिमी विक्षोभ/भुमध्य सागरिय विक्षोप के कारण भारत में उतरी मैदानी क्षेत्र में जो वर्षा होती है उसे मावठ कहते हैं।
- मावठ का प्रमुख कारण – जेटस्ट्रीम – सम्पूर्ण पृथ्वी पर पश्चिम से पूर्व कि ओर क्षोभमण्डल में चलने वाली पवनें।
- मावठ रबी की फसल के लिए अत्यन्त उपयोगी होती है। इसलिए इसे गोल्डन ड्राप्स या स्वर्णीम बुंदें कहा जाता है।
3. शीत ऋतु
राजस्थान में नम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। Climate of Rajasthan इन चार महीनों में जनवरी माह में सर्वाधिक सर्दी पड़ती है।शीत ऋतु में भूमध्यसागर
में उठने वाले चक्रवातों के कारण राजस्थान के उतरी पश्चिमी भाग में वर्षा होती है। जिसे “मावट/मावठ” कहा जाता है। यह वर्षा माघ महीने में होती है। शीतकालीन वर्षा मावट को – गोल्डन ड्रो प (अमृत बूदे) भी कहा जाता है। यह रवि की फसल के लिए लाभदायक है। राज्य में हवाएं प्राय पश्चिम और उतर-पश्चिम की ओर चलती है।
राजस्थान की आंधियों के नाम- Climate of Rajasthan
- उत्तर की ओर से आने वाली – उत्तरा, उत्तराद, धरोड, धराऊ
- दक्षिण की ओर से आने वाली – लकाऊ
- पूर्व की ओर से आने वाली – पूरवईयां, पूरवाई, पूरवा, आगुण
- पश्चिम की ओर से आने वाली – पिछवाई, पच्छऊ, पिछवा, आथूणी।
अन्य दिशाएँ
- उत्तर-पूर्व के मध्य से – संजेरी
- पूर्व-दक्षिण के मध्य से – चीर/चील
- दक्षिण-पश्चिम के मध्य से – समंदरी/समुन्द्री
- उत्तर-पश्चिम के मध्य से – सूर
महत्वपूर्ण तथ्य –
नाॅर्वेस्टर (Norvester)– छोटा नागपुर का पठार पर ग्रीष्म काल में चलने वाली पवनें नाॅर्वेस्टर कहलाती है। यह बिहार एवं झारखण्ड राज्य को प्रभावित करती है। जब नाॅर्वेस्टर पवनें पूर्व की ओर आगे बढ़ कर पश्चिम बंगाल राज्य में पहुंचती है तो इन्हें काल वैशाली कहा जाता है। तथा जब यही पवनें पूर्व की ओर आगे पहुंच कर असम राज्य में पहुंचती है तो यहां 50 सेमी. वर्षा होती है। यह वर्षा चाय की खेती के लिए अत्यंत उपयोगी होती है इसलिए इसे चाय वर्षा या टी. शावर कहा जाता है।
मैंगो शावर (Mango Shower) – तमिलनाडू, केरल एवम् आन्ध्रप्रदेश राज्यों में मानसुन पूर्व जो वर्षा होती है जिससे यहां की आम की फसलें पकती है वह वर्षा मैंगो शाॅवर कहलाती है।
चैरी ब्लाॅस्म (Cherry Blosum )- कर्नाटक राज्य में मानसून पूर्व जो वर्षा होती है जो कि यहां की कहवा की फसल के लिए अत्यधिक उपयोगी होती है चैरी ब्लाॅस्म या फुलों की बौछार कहलाती है। मानसून की विभंगता – मानसून के द्वारा किसी एक स्थान पर वर्षा हो जाने तथा उसी स्थान पर होने वाली अगली वर्षा के मध्य का समय अनिश्चित होता है उसे ही मानसून की विभंगता कहा जाता है।
मानसून का फटना – दक्षिण भारत में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान केरल के मालाबार तट पर तेज हवाओं एवम् बिजली की चमक के साथ बादल की तेज गर्जना के साथ जो मानसून की प्रथम मुसलाधार वर्षा होती है उसे मानसून का फटना कहा जाता है।
अल-नीनो(Al – neeno) – यह एक मर्ग जल धारा है जो कि दक्षिण अमेरिका महाद्विप के पश्चिम में प्रशान्त महासागर में ग्रीष्मकालीन मानसून के दौरान सक्रिय होती है इससे भारतीय मानसून कमजोर पड़ जाता है। और भारत एवम् पड़ौसी देशों में अल्पवृष्टि एवम् सुखा की स्थिति पैदा
हो जाती है।
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ला-नीनो(La-neeno ) – यह एक ठण्डी जल धारा है जो कि ऑस्ट्रेलिया यह महाद्वीप के उत्तर-पूर्व में अल-नीनों के विपरित उत्पन्न होती है इससे भारतीय मानसून की शक्ति बढ़ जाती है और भारत तथा पड़ौसी देशों में अतिवृष्टि की स्थिति पैदा हो जाती है।
Very Important Facts about Rajasthan Climate- Rajasthan geography
- राजस्थान के सबसे गर्म महिने मई – जुन है तथा ठण्डे महिने दिसम्बर – जनवरी है।
- राजस्थान का सबसे गर्म व ठण्डा जिला – चुरू
- राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर पश्चिमी क्षेत्र मेंरहता है।
- राजस्थान का सर्वाधिक दैनिक तापान्तर वाला जिला -जैसलमेर
- राजस्थान में वर्षा का औसत 57 सेमी. है जिसका वितरण 10 से 100 सेमी. के बीच होता है। वर्षा का असमान वितरण अपर्याप्त और अनिश्चित मात्रा हि राजस्थान में हर वर्ष सुखे व अकाल का कारण बनती है।
- राजस्थान में वर्षा की मात्रा दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर घटती है। अरब सागरीय मानसुन हवाओं से राज्य के दक्षिण व दक्षिण पूर्वी जिलों में पर्याप्त वर्षा हो जाती है।
- राज्य में होने वाली वर्षा की कुल मात्रा का 34 प्रतिशत जुलाई माह में, 33 प्रतिशत अगस्त माह में होती है।
- जिला स्तर पर सर्वाधिक वर्षा – झालावाड़ (100 सेमी.)
- जिला स्तर पर न्यूनतम वर्षा – जैसलमेर(10 सेमी.)
- राजस्थान में वर्षा होने वाले दिनों की औसत संख्या 29 है।
- वर्षा के दिनों की सर्वाधिक संख्या – झालावाड़(40 दिन), बांसवाड़ा(38 दिन)
- वर्षा के दिनों की न्यूनतम संख्या – जैसलमेेर(5 दिन)
- राजस्थान का सर्वाधिक वर्षा वाला स्थान – माउण्ट आबु(120-140 सेमी.) है यहीं पर वर्षा के सर्वाधिक दिन(48 दिन) मिलते हैं।
- वर्षा के दिनों की संख्या उत्तर पश्चिम से दक्षिण पूर्व की ओर बढ़ती है।
- राजस्थान में सबसे कम आर्द्रता – अप्रैल माह में
- राजस्थान मे सबसे अधिक आर्द्रता – अगस्त माह में
- राजस्थान में सबसे सम तापमान – अक्टुबर माह में रहता है।
- सबसे कम वर्षा वाला स्थान – सम (जैसलमेर) 5 सेमी.
- राजस्थान को 50 सेमी. रेखा दो भागों में बांटती है। 50 सेमी. वर्षा रेखा की उत्तर-पश्चिम में कम होती है। जबकि दक्षिण पूर्व में वर्षा अधिक होती है। यह 50 सेमी. मानक रेखा अरावली पर्वत माला को माना जाता है।
- राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला जिला – झालावाड़ तथा न्यूनतम जिला जैसलमेर है। राजस्थान में सर्वाधिक आर्द्रता वाला स्थान माउण्ट आबू तथा कम आर्द्रता फलौदी(जोधपुर) है।
- राजस्थान में सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला महिना मार्चअप्रैल है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में होती है तथा सर्वाधिक ओलावृष्टि वाला जिला जयपुर है।
- राजस्थान में हवाऐं पाय पश्चिम व दक्षिण पश्चिम की ओर चलती है।
- हवाओं की सर्वाधिक गति – जून माह
- हवाओं की मंद गति – नवम्बर माह
- ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम क्षेत्र क्षेत्र का वायुदाब पूर्वी क्षेत्र से कम होता है।
- ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की तरफ से गर्म हवाऐं चलती है जिन्हें लू कहते है। इस लू के कारण यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इस निम्न वायुदाब की पूर्ती हेतु दुसरे क्षेत्र से (उच्च वायुदाब वाले क्षेत्रों से) तेजी से हवा उठकर आती है जो अपने साथ धुल व मिट्टी उठाकर ले आती है इसे ही आंधी कहते हैं।
- आंधियों की सर्वाधिक संख्या – श्रीगंगानगर(27 दिन)
- आंधियों की न्यूनतम संख्या – झालावाड़ (3 दिन)
- राजस्थान के उत्तरी भागों में धुल भरी आधियां जुन माह में और दक्षिणी भागों में मई माह में आति है।
- राजस्थान में पश्चिम की अपेक्षा पूर्व में तुफान(आंधी + वर्षा) अधिक आते है।
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