राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं Questions

राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं Questions Updated, Rajasthan ke riti riwaj pdf notes free download, customs of rajasthan updated nots free download, Rajasthan ka pahnava आदि के बारे मे विस्तृत रूप से बात करेंगे। यह नोट्स राजस्थान की सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अति महत्वपूर्ण है जैसे – RPSC RAS, LDS Teacher Bharti, REET, VDO, Computer Teacher, Patwar, Rajasthan Police Constable, Rajasthan Police SI etc.

रत एक ऐसा देश है जहां विविधता का पर्यायी रूप मिलता है। यहाँ पर भिन्न-भिन्न राज्यों के रीति रिवाज अपनी विशेषता और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध हैं। राजस्थान एक ऐसा राज्य है जिसकी संस्कृति और रीति-रिवाज विश्वभर में मशहूर हैं। इस लेख में हम बात करेंगे राजस्थान के रीति रिवाजों के बारे में और इनका महत्व क्या है।

rajasthan ki pramukh riri riwaj
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Table of Contents

Rajasthan ki Riti Riwaj- प्रमुख संस्कार

  1. गर्भाधान
  2. पुंसवन- पुत्र प्राप्ति हेतू
  3. सिमन्तोउन्नयन- माता व गर्भरथ शिशु की अविकारी शक्तियों से रक्षा करने के लिए।
  4. जातकर्म
  5. नामकरण
  6. निष्कर्मण- शिशु को जन्म के बाद पहली बार घर से बाहर ले जाने के लिए।
  7. अन्नप्रसान्न- पहली बार अन्न खिलाने पर (बच्चे को)
  8. जडुला/ चुडाकर्म – 2 या 3 वर्ष बाद प्रथम बार केस उतारने पर
  9. कर्णभेदन
  10. विद्यारम्भ
  11. उपनयन संस्कार- गुरू के पास भेजा जाता है।
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  12. वेदारम्भ – वेदों का अध्ययन शुरू करने पर
  13. गौदान- ब्रहा्रहा्चार्य आश्रम में प्रवेश
  14. समावर्तन- शिक्षा समाप्ति पर
  15. विवाह- गृहस्थ आश्रम में प्रवेश
  16. अन्तिम संस्कार- अत्येष

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विवाह के संस्कार

राजस्थान में विवाह के अवसर पर रीति-रिवाजों तथा आडम्बरों की धूम-धाम होती है। विवाह के अवसर पर अनेक नेगचार सम्पन्न किये जाते है। ज्यादातर नेगचार आर्थिक और सामाजिक होते है। वैवाहिक रस्में मुख्यतः अग्र हैंः-

सगाई – Sagai

राजस्थान में आदिवासियों, जनजातियों को छोङकर सामान्यतः युवावस्था में वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किये जाते है। ग्रामीण अंचलों में कम आयु में ही शादी कर डालते है। लङका व लङकी के परिजन किसी भाट, पुरोहित, चारण अथवा और किसी को बीच में रखकर सगाई या मंगनी तय करते है। इस प्रकार किसी को बीच में रखकर सगाई या मंगनी तय करते है। इस प्रकार किसी लङकी के लिए लङका रोकने की रस्म को सगाई के नाम से जाना जाता है। जब सगाई तय हो जाती है तो कन्या पक्ष अपनी सामथ्र्य के अनुसार लङके के घर रूपया व नारियल शगुन के रूप में भेजता है।
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टीका – Teeka

शुभ घङी और शुभ मुहूर्त पर वर का पिता अपने परिजनों, सजातियों, पङोसियों को आमन्त्रित करता है। इस अवसर पर वधू पक्ष के लोग, वर के घर जाकर वर को चैकी पर बिठाकर वर तिलक करते है तथा अपनी सामथ्र्य के अनुसार नकदी, मिठाइयाँ और वस्त्र-आभूषण देते है।
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लग्न पत्रिका – Lagan patrika

वर-वधू पक्ष द्वारा तय शुभ मुहूत्र्त पर कन्या पक्ष की ओर से रंग-बिरंगे कागज में पण्डित द्वारा लिखवाकर लग्न पत्रिका भिजवाई जाती है, जिसमें विवाह के शुभ मुहूत्र्त का उल्लेख होता है तथा श्रीफल होता है एवं तदनुसरा ही वर पक्ष वाले बारात बनाकर वधू के घर ब्याहने जाते है।

कुंकुम पत्रिका – Kumkum patrika

विवाह के लगभग एक सप्ताह या कुछ दिन पूर्व वर और कन्या के माता-पिता अपने सगे-सम्बन्धियों, मित्रों को विवाह के अवसर पर पधारने के लिए केसर और कुंकुम से सुसज्जित निमन्त्रण पत्र भेजते है, जिसमें वैवाहिक कार्यक्रम का तिथिवार उल्लेख होता है। सर्वप्रथम कुंकुम पत्रिका गणेशजी को न्योता देने हेतु दी जाती है।

बान बैठना – Baan baithna

लग्न पत्र पहुँचने के पश्चात् दोनों अपने-अपने घरों में वर व वधू को चैकी पर बिठाकर गेहूँ का आटा तथा घी और हल्दी घोलकर इसको बदन में मलते है, जिसको पीठी करना कहते है।
सुहागिन स्त्रियाँ मांगलिक गीत गाती है। इस शुभ क्रिया को बान बैठना कहते है। इस दिन से वर-वधू के लाङ-चाव किये जाते है। बान बैठने के पश्चात् वर या वधू को मेहमान अपनी हैसियत के अनुसार रूपये देते है, जिसे बान देना कहते है। भाई-बन्धु व इष्ट मित्र वर या वधू को अपने घर निमन्त्रित कर उत्तमोत्तम भोजन भी कराते है और वापस बङे ही ठाट-बाट से उनके घर पहुँचा देते है, जिसे बनौरा (बिनौरी) भी कहते है।
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विनायक पूजन – Vinaayak pujan

विवाह के एक या दो दिन पूर्व वर के घर गणेशजी का पूजन किया जाता है और जाकर सम्बन्धियों और पङोसियों को भोजन पर आमन्त्रित किया जाता है।

बरी पडला – Bari padla

वर के घर से वधू के घर को कपङा-आभूषण आदि तैयार कर ले जाने को बरी तथा मिष्ठान्न-मेवा आदि ले जाने को पङला कहते है। राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं Questions pdf
यह बरी व पङला विवाह तिथि को बारात के साथ ले जाता है। बरी में लाये गए वस्त्राभूषणों का वधू विवाह के समय धारण करती है।

कांकन-डोरडा – kaankn dorda

विवाह के दो दिन पूर्व तेल पूजन कर वर के दाहिने हाथ में कांकन-डोरा बांधते है। यह मोली को बाँट कर बनाया जाता है। एक सूखे फल में छेद कर वह मोली में पिरोया जाता है और एक मोरफली और लाख व लोहे के छल्ले मोली में बांध दिये जाते है। इस समय एक कांकन-डोरा वधू के लिए भेजा जाता है, जिसे वधू के हाथ में बांधा जाता है।

बिन्दोरी – Bindori

विवाह के पहले दिन वर की बिन्दोरी निकाली जाती है। उसे गाज-बाजे के साथ गाँव में घुमाया जाता है। वर के साथ मित्र एवं परिचित भी निकासी में सम्मिलित होते है। वह मंदिर जाकर देवताओं की पूजा करता है। इसके बाद उसे किसी मित्र या रिश्तेदार के यहाँ ठहराया जाता है। निकासी के बाद वर-वधू को लेकर ही वापस आने पर घर लौटता है। थाल में दीपक सजाकर वर-वधू की पूजा की जाती है।
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मोड बांधना – Mod bandhna

विवाह के दिन सुहागिन स्त्रियाँ वर को नहला-धुलाकर वस्त्रादि से सुसज्जित कर कुलदेव के समक्ष चैकी पर बैठाकर पूजन कराती है तथा वर के सिर पर सुन्दर पगङी पर मुकुट बाँधा जाता है। इसी समय वर को उसकी माँ या घर की बङी-बूढ़ी औरत अपना दूध पिलाती है कि तूने मेरा दूध पिया है, अब तू पराये घर जाकर और वहाँ से वधू को लाकर मुझे भूल मत जाना।

बारात – Barat

पूर्व निर्धारित तिथि को सज-धज कर वर पक्ष्ज्ञ के लोग बारात बनाकर वधू पक्ष के घर जाते है। दूल्हा घोङी पर सवार होता है। बारात में हाथी, घोङे, बैण्ड, रथ, ऊँट आदि जाते है जो सजे हुए होते है। रोशनी व आतिशबाजी का भी आयोजन होता है।

सामेला – Samela

जब बारात दुल्हन के गाँव पहुँचती है तो वर पक्ष की तरफ से नाई या ब्राह्मण आगे जाकर कन्या पक्ष वालों का बारात के आगमन की सूचना देता है। सूचितकर्ता को पुरस्कारस्वरूप कन्या पक्ष की हैसियत के अनुसार नारियल व दक्षिणा देते है। तत्पश्चात् कन्या पक्ष वाले बन्धुओं व सम्बन्धियों सहित बारात ही अगवानी करते है जिसे सामेला या ठुकाव कहते है। वहाँ से बरी पङला में से आवश्यक सामान जो बाराती साथ में लाते है, वधू के घर पहुँचा देते है।

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तोरण – Toran

कन्यागृह पर जब वर प्रथम बार पहुँचता है तो घर के दरवाजे पर बँधे तोरण को घोङी पर चढ़ा हुआ ही छङी तलवार से छूता है। तोरण मांगलिक चिन्ह होता है। तोरण विवाह की अनिवार्य रस्म में होता है।

वधू के तेल चढ़ाना – Vadhu ke tail chadhana

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वधू के तेल उबटने लगाने का रिवाज बारात के घर आने पर भी होता है। तेल चढ़ाने की रस्म से आधा विवाह मान लिया जाता है। तेल चढ़ाये जाने के पश्चात् यदि मुहूत्र्त पर वर न पहुँच सके तो ऐसे वक्त में बङी कठिनाई पैदा हो जाती है और विवशता की स्थिति में उसका विवाह स्वजातीय अन्य युवक से करना पङता है। राजस्थान में इस अवसर पर प्रचलित कहावत है-तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार। इसलिए वर के आने के पश्चात् ही तेल चढ़ाया जाता है।

फेरे (सप्तपदी)

विवाह में यह प्रथा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। इसी व्यवस्था द्वारा दो अनजान युवक-युवती आजन्म एक सूत्र में बँध कर जीवन-साथी बन जाते है। वर अपनी वधू का हाथ अपने हाथ में लेकर अग्नि के समक्ष सात प्रदक्षिणा कर जीवन-पर्यन्त साथ निभाने की प्रतिज्ञा करता है। फेरे पङने के बाद वर-वधू, पति-पत्नी का रूप धारण कर गृहस्थ बन जाते है।

कन्यादान – Kanyadaan

कन्यादान के दो रूप है- विवाह में वर को कन्या देेने की रसम तथा इस अवसर पर कन्या को दिया जाने वाला दान, फेरों की रस्म की समाप्ति पर कन्या के माता-पिता वेद-मन्त्रादि से कन्यादान कर संकल्प करते है। वर कन्या की जिम्मेदारी निभाने का वचन देता है तथा दो-तीन घंटे की इस रस्म के साथ विवाह की मुख्य क्रियायें समाप्त हो जाती है।

पहरावणी – Pahraavani

विवाह के पश्चात् दूसरे दिन बाराजत विादा की जाती है। विदा में वर सहित प्रत्येक बाराती को यथाशक्ति नकद राशि दी जाती है, जिसे पहरावणी या रंगबरी की रस्म कहा जाता है। आजकल बारात उसी दिन विदा होने लगी है।

कुलदेवता की पूजा – Kuldevta ki puja

वर-वधू के विवाह बंधन में बंध कर आने के उपरान्त सर्वप्रथम वर पक्ष के कुलदेवता की पूजा की जाती है तथा बारात के वापस लौटने से हार रुकाई की रस्म भी अदा की जाती है। वर-वधू की आरती उतारी जाती है।

राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं Questionsतत्पश्चात्वर अपनी बहिन को दक्षिणा के रूप में कुछ देकर ही घर में प्रवेश करता है। इस अवसर पर मांगलिक गीत गाये जाते है। कुलदेवता की पूजा करने के बाद पति-पत्नी के कांकन-डोरे खोले जाते है। इन क्रियाओं के बाद कन्या के भाई आदि कन्या को विदा करा कर पुनः पीहर ले जाते है।

गौना (आणा, मुकलावा)-

यदि वधू वयस्क होती है तो यह रस्म विवाह के अवसर पर ही सम्पन्न कर दी जाती है, अन्यथा उसके सयानी होने पर यह रस्म अदा की जाती है। इस रस्म के साथ ही पति-पत्नी के रूप में उनका सामाजिक जीवन प्रारम्भ होता है।

कोथला – Kothla

पुत्री के प्रथम जापा होने पर जवाई एवं उनके परिवार वालों को बुलाकर भेंट देना।

गमी (शोक) की रस्में

धार्मिक व सामाजिक परम्पराओं के अनुसार गमी की रस्में को भी पूर्ण सम्मान के साथ महत्व दिया जाकर दिवंगत की आत्मा के प्रति निष्ठा प्रकट की जाती है। गमी की मुख्य रस्में निम्न हैं-

बैकुण्ठी – Bekunthi

जब कोई मरता है तो उसे या तो साधारण काष्ठ शैय्या पर लिटाकर या छतरीदार सिंह जैसी लकङी का ढाँचा जिसे बैकुण्ठी के नाम से जाना जाता है, पर बैठाकर गाजे-बाजे के साथ चिराग जलाकर शमशान की भूमि में ले जाते है। वहाँ चिता बनाकर अन्त्येष्टि क्रिया नारियल, घी व चन्दन आदि वस्तुओं को जलाकर करते हैं। अग्नि की आहूति बेटा या नजदीकी भाई देता है जिसको लौपा कहते है।

बखेर – Bakher

राजस्थानी प्रथा के अनुसार किसी धनी या सम्पन्न व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर कोङियाँ, पैसे, रूपये आदि कलश के आगे चलने वाले मेहतर व भिखारियों को शमशान तक लुटाये जातेे है। इसी रस्म को बखेर करना कहते है।

दण्डोत – dandot

कहीं-कहीं पर बैकुण्ठी के आगे मृत व्यक्ति के पोते आदि साष्टांग दण्डवत् करते हुए आगे बढ़ते जाते है।

आधेटा – Aadheta

घर से शमशान तक के बीच में चैराहे पर बैकुण्ठी का दिशा-परिवर्तन किया जाता है। इस क्रिया को आधेटा कहते है। बैकुण्ठी ले जाने वाले व्यक्ति निकटतम संबंधी होते है, जिन्हें कांधिया कहते है।
इसी समय जौ के आटे से बनाया हुआ पिण्ड गाय को खिलाया जाता है, इसे पिंडदान भी कहा जाता है। मृत व्यक्ति की अर्थी के आगे लोग भजन गाते हैं- श्रीराम नाम सत्य है, सत्य बोल गत्य (गति) है।
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सांतरवाङा – Santrvada

अन्तिम संस्कार होने के बाद अन्त्येष्टि में गये व्यक्ति कुएँ या तालाब पर स्नान कर व्यक्ति के घर जाते है, जहाँ घर का मुखिया उन लोगों के प्रति आभार प्रदर्शित करता है एवं आगंतुक लोग उसे व उसके परिवार को धैर्य बंधाकर सान्त्वना देते है। जब तक मृतक की अन्त्येष्टि क्रिया नहीं हो जाती है तब तक घर व पङोस में चूल्हें नहीं जलाये जाते है। इन रस्मों को सांतरवाङा कहते है।

फूल चयन – Fool chayan

मृत्यु के तीसरे दिन मृतक की हड्डियाँ, जो बिना जली होती है, दांत आदि को मृतक के सम्बन्धी शमशान से चुनकर एक कपङे की थैली में लपेटकर सुरक्षित रखते है। इसे फूल चुगना कहते है। उसी दिन उन हड्डियों को परिवार का कोई व्यक्ति सौरोंजी, हरिद्वार या पुष्कर आदि तीर्थ या नदी में बहाये जाने के लिए लेकर जाता है।

तीया – Teeya

मृत्यु के तीसरे दिन मूंग व चावल आदि पकाकर व घी-खाँड मिलाकर आस-पङोस के बच्चों को खिलाया जाता है। इसी दिन उठावने की बैठक अर्थात् सांतरवाङा भी किया जाता है। शमशान भूमि में घी खाँड में मले मूँग चावल को कौटों को खिलाने, परिजन को नंगे भी भेजा जाता है। इसे तीया की रस्म भी कहते है।

मौसर – Mosar

मृतक के बारहवें दिन ब्राह्मण से हवन कराकर गृह-शुद्धि कराई जाती है। राजस्थान के रीति रिवाज Rajasthan ke riti Riwaj PDF Notes इसी दिन या एक वर्ष पश्चात् मृतक की याद में स्वजातीय भाई-बन्धुओं को भोज दिया जाता है, जिसे मौसर या नुक्ता भी कहते है। भोजन के पश्चात् सभी घर वाले मन्दिर जाकर देव-दर्शन करते है।
पगङी- मौसर के दिन की मृत व्यक्ति के बङे पुत्र को उसके उत्तराधिकारी के प्रमाणस्वरूप पगङी बँधाई जाती है। पहली पगङी तो घर की तरफ से बाँधी जाती है, फिर भाई-बंधुओं, रिश्तेदारों की तरफ से बँधाई जाती है। पगङी की रस्म में रिश्तेदार नगद राशि भी देेते है।
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राजस्थान की प्रमुख प्रथाएँ

बाल-विवाह, पर्दा-प्रथा, सती-प्रथा, विधवा-विवाह निषेध होने की कुरीतियाँ राजस्थानी समाज में इतनी गहरी पैठ गई थी कि उनके शिंकजे से महिलाओं का निकलाना असम्भव था। विधवा विवाह आज भी कम संख्या में होते है। कई जातियों में तो स्त्रियाँ पति के मरने पर देवर के साथ शादी कर लेती है। बाल-विवाह की प्रथा शहरों में कम हो गई है किन्तु ग्रामीण अंचलों में अभी भी प्रचलित है। हिन्दू मुसलमानों में प्रतिवर्ष हजारोें की संख्या में बाल-विवाह होते है। पर्दा-प्रथा के प्रसार के साथ कम हो रही है। प्रमुख कुरीतियाँ निम्न है-

1. पर्दा प्रथा

राजस्थान में पर्दा-प्रथा का ज्यादा प्रचलन है। हिन्दुओं में उच्च वर्गों में ज्यादा है। राजपूतों में पर्दा-प्रथा अभी भी प्रचलित है। यह माना जाता है कि भारत में मुस्लिम शासन के पदार्पण के उपरान्त ही पर्दे का प्रचलन हुआ। राजस्थान में चूँकि मुस्लिम शासन का अत्यधिक प्रभाव रहा, अतः इस प्रथा का समावेश होना जरूरी था। स्त्रियाँ सामान्यतः ससुराल में ही अपने से बङे स्त्री-पुरुषों से पर्दा करती है।

2. वैधव्य प्रथाराजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं Questions

पर्दा-प्रथा की स्थिति ने पति-भक्ति या पति-पूजा के रूप में समाज में जिस भयानक परम्परा का प्रतिपादन किया, वह था- अपने पति की मृत्यु के बाद उम्र भर वैधव्य जीवन व्यतीत करना।
ऐसी औरत का पति की मृत्यु के बाद सामाजिक महत्व भी कम हो जाता था।
विधवा-विवाह किसी विधवा का पुनर्विवाह होता है, जिसमें पति की मृत्यु के बाद वह किसी अन्य योग्य पुरुष से विधिवत् शादी कर उसके साथ जीवन निर्वाह करती है।

जबकि नाता जाने में यह आवश्यक नहीं कि पुनर्विवाह करने वाली विधवा ही हो। राजस्थान में विधवा को घर में बङी अपमानजनक परिस्थितियों में जीवन बिताना पङता है।
घर में किस भी जन्म, विवाह आदि शुभ कार्यों पर उसकी उपस्थिति अच्छी नहीं समझी जाती है। उसको गहने पहनने या शृंगार करने की मनाही होती है। उसे काले या सफेद कपङे पहनने पङते है।

3. सती प्रथा(sati partha)–

राजस्थान में सती-प्रथा का सर्वाधिक प्रचलन राजपूत जाति में था। सती प्रथा की परम्परा मुस्लिम आक्रमणों के कारण आरम्भ हुई और राजपूत स्त्रियों ने अपनी मर्यादा, पवित्रता, पति-परायणता की रक्षा करने के लिए सती या जौहर करना आरम्भ कर दिया जो राजपूत स्त्रियों के पतिव्रत धर्म का अनिवार्य अंग बन गया। ब्रिटिश शासन के दौरान कानून बनाये जाने से सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगने से सती प्रथा समाप्त हुई।

राजस्थान में सर्वप्रथम 1822 ई. में बूँदी में सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया। बाद में राजा मनमोहन राय के प्रयत्नों से लार्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई. में सरकारी अध्यादेश से इस प्रथा पर रोक लगाई। मोहम्मद तुगलक पहला शासक था जिसने सती प्रथा पर रोक हेतु आदेश जारी किए थे।

4. कन्या वध(kanya vadh)-

लार्ड विलियम बैटिंग ने 1829 ई. में कन्या वध पर कानून प्रतिबन्ध लगाया था। हाङौती के पाॅलिटिकल एजेंट विलकिंसन के प्रयासों से लार्ड विलियम बैंटिक के समय में राजस्थान में सर्वप्रथम कोटा राज्य में सन् 1833 में तथा बूँदी राज्य में 1834 में कन्या वध करने को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया।

5. डाकन प्रथा(dakan partha)-

राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्रियों पर डाकन होने का आरोप लगाकर उन्हें डालने की कुप्रथा प्रचलित थी। इस प्रथा के कारण सैकङों स्त्रियों का डाकन होने का आरोप लगाकर निर्दयातापूर्वक मार डाला जाता था। सोलहवीं शताब्दी में राजपूत रियासतों ने कानून बनाकर इस कुप्रथा को समाप्त कर दिया।
राजस्थान के रीति रिवाज एवं प्रथाएं Questions

सर्वप्रथम अप्रैल, 1853 ई. में मेवाङ में महाराणा स्वरूप सिंह के समय में खैरवाङा (उदयपुर) में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया।

6. स्त्री क्रय-विक्रय तथा घरेलू दास-प्रथा-

उन्नीसवीं शताब्दी तक राजस्थान में स्त्रियों के क्रय-विक्रय की कुरीति प्रचलित थी। राजपूत जाति अपनी लङकी के विवाह में गोला-गोली दहेज में देते थे, इसलिए गोला-गोली की खरीद की जाती थी। साथ ही सामन्तगण, सम्पन्न लोग कन्याओं को अपने पास रखैल के रूप में रखने के लिए भी खरीदते थे।

राजस्थान के रीति रिवाज Rajasthan ke riti Riwaj PDF Notes
इसी प्रकार राजपूतों में घरेलू दास-प्रथा का बहुत प्रचलन था जो उन्नीसवीं सदी के अन्त तक जारी रहा। इस प्रकार के घरेलू दासों को गोला, दरोगा, चाकर, चेला, दास आदि नामों सम्बोधित किया जाता था, जबकि इनकी स्त्रियों को गोली, डांवरी, बाई आदि नामों से पुकारा जाता था। विलियम बैंटिक ने 1832 ई. में दास प्रथा पर रोक लगाई। राजस्थान में कोटा व बूंदी में भी 1832 ई. में इस प्रथा पर रोक लगाई गई।